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कहीं आप भी तो नहीं पी रहे सफेद जहर ?

यूँ तो दूध पीने से सेहत चुस्त दुरुस्त होती है और शायद ही कोई एक ऐसा घर हो जहां दूध की जरूरत न हो..लेकिन आज कल जिस तरह का दूध मार्केट में है उस दूध को पीकर सेहत बनाने वालों की रगों में दूध के साथ ही यूरिया, सोडा, डिटर्जेंट सहित कई अन्य तरह के हानिकारक केमिकल भी घुल रहे हैं। दूध पीने से उनकी सेहत बनने के बजाए असल में धीरे धीरे बिगड़ रही है।

एक आंकड़े की मानें तो शहर में प्रतिदिन लगभग लगभग आठ से ज्यादा लीटर दूध की आवश्यकता होती है और आस पास के कई जिलों से दूधिये यहां दूध बिक्री के लिए आते हैं। इस दूध की सप्लाई शहर भर की दूध डेरियों, मिठाई की दुकानों के अलावा घरों में भी होती है। दूध की मांग अधिक और उत्पादन कम होने से दूधिये दूध में मिलावट कर इस मांग को पूरा कर रहे हैं। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग होली, दीपावली, ईद जैसे त्योहारों पर छापेमारी अभियान चलाता है तो कई बार इस छापेमारी में दूधिये दूध का पीपा तक छोड़कर भाग जाते हैं।

फैट बढ़ाने को मिलाते रिफाइंड

भैंस के 10 लीटर दूध को दूधिये 15 लीटर बना देते हैं। इसमें वे पांच लीटर पानी मिलाते हैं। इससे फैट कम हो जाता है लेकिन फैट के अनुपात को सही करने के लिए दूध में रिफाइंड मिला देते हैं जिससे मात्रा ठीक मिलती है।

बनाया जा रहा सिंथेटिक दूध

दूध में पानी के साथ यूरिया, सोडा, चीनी, कास्टिक सोडा, केमिकल, सिंघाड़ा आटा आदि के मिश्रण से सिंथेटिक दूध भी बनाया जा रहा है।

समय से नहीं आती रिपोर्ट

दूध में मिलावट की जांच के लिए लखनऊ स्थित लैब में नमूना भेजा जाता है। 40 दिन में रिपोर्ट आ जानी चाहिए लेकिन समय से नहीं आ पाती है।

शक होने पर करें जांच

  • दूध लेते समय जांच के लिए कुछ दूध में नींबू की एकाधी बूंद निचोड़े, शुद्ध दूध तुरंत फट जाएगा लेकिन मिलावटी दूध फटने में समय लेगा।
  • दूध में पानी ज्यादा मिलाया गया है तो उसकी जांच के लिए दूध को किसी प्लेन सतह पर रखकर एक तरफ झुकाएं। अगर दूध तेज गति से नीचे गिर जाता है तो इसका मतलब है कि इसमें पानी मिला हुआ है, अगर दूध रुक-रुक कर गिरे तो पानी की मिलावट कम है।
  • सिन्थेटिक मिले दूध को अंगुलियों के बीच रगड़ने पर साबुन के झाग जैसी फीलिंग आती है और दूध गरम करने पर दूध का रंग पीला पड़ जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी की गई रिपोर्ट की मानें तो अगर मिलावटी दूध की बिक्री पर लगाम न लगाई गई तो 2025 के आखिरी तक देश में एक बड़ा हिस्सा कैंसर जैसी गंभीर और जानलेवा बीमारी से जूझता दिखेगा।