कानपुर में विकास दुबे आतंक का पर्याय बन चुका था। वो न जनता को कुछ समझता न ही शासन प्रशासन को..उसकी देहरी वही पार कर सकता था, जिसके लिए विकास दुबे हामी भर देता था..लेकिन फिर एक दिन कानपुर पुलिस ने आतंक के पर्याय बने विकास दुबे के बिकरु स्थिति घर पर धावा बोला। अंधाधुंध गोलियां चलीं और उस सीधी मुठभेड़ में बिल्हौर सीओ देवेंद्र मिश्रा, शिवराजपुर थाना अध्यक्ष महेश चंद्र यादव, मंधना चौकी इंचार्ज अनूप कुमार, सब इंस्पेक्टर नेबू लाल सहित सिपाही जितेंद्र पाल, सुल्तान सिंह, राहुल कुमार, बबलू कुमार शहीद हो गए थे। इसी मुठभेड़ में बिठूर थाना प्रभारी कौशलेंद्र प्रताप सिंह, दारोगा सुधाकर पांडे, दारोगा अजय कश्यप, सिपाही अजय सिंह सेंगर और सिपाही शिव मूरत घायल हुए थे..इन सबके शरीर पर आज भी विकास दुबे गैंग की मारी गोलियों के निशान मौजूद हैं..
उन घायल पुलिसकर्मियों के साथ अब कुछ ऐसा हुआ है कि आप भी सोच में पड़ जाएंगे..
बिकरु कांड में गैंगस्टर विकास दुबे और उसके गैंग से मोर्चा लेते समय अपनी जान की बाजी लगा देने वाले और उसकी गोलियों से घायल बहादुर पुलिसकर्मियों को वसूली का नोटिस भेजा गया है..
बिकरु कांड में घायल पुलिसकर्मियों को प्राइवेट नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था। सभी घायल पुलिसकर्मियों को देखने खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आये थे, लेकिन अब उन्हीं पुलिस वालों को उन्हीं के विभाग ने एक नोटिस दिया है जिसमें उनके इलाज के दौरान खर्च हुए साढ़े 6 लाख रुपये विभाग को वापस करने का फरमान दिया गया है और अगर इलाज का पैसा इन पुलिसकर्मियों नके वापस न किया तो वो साढ़े 6 लाख रुपये उनकी सैलरी से हर महीने 20 प्रतिशत की दर से काट लिए जाएंगे..
बिकरु काण्ड के घायल पुलिसकर्मियों का ट्रांसफर कानपुर से बाहर हो चुका है लेकिन अपने ही विभाग से नोटिस मिलने के बाद से ही पीड़ित पुलिसकर्मी कानपुर पुलिस अधिकारियों के चक्कर लगा रहे हैं।
अब ऐसे में एक बड़ा सवाल उठता है कि कल तक जो पुलिसकर्मी उत्तर प्रदेश के लिए गर्व हुआ करते थे, अचानक वो सरकार के लिए बोझ क्यों बन गए..?