The Media Voice

पत्रकार कैसे बने

आज कल आपको हर गली दो गली में एकाधे पत्रकार मिल ही जाते होंगे..लेकिन एक समय ऐसा भी था जब पत्रकार बनना आसान नहीं होता था, क्यों कि जब तक आप में पढ़ने और समसामायिक मुद्दों पर लिखने की क्षमता विकसित नहीं होती थी तब तक आप पत्रकार बन ही नहीं सकते थे..अगर सीधे शब्दों में कहें तो सालों लग जाते थे संवाददाता से ब्यूरोचीफ तक के सफर में..

लेकिन आज कल तो बस आपकी जेब में चंद हरे या गुलाबी नोट हों तो पत्रकार बनने की भी क्या जरूरत, 1000-2000 में डोमेन खरीद कर कोई न्यूज़ वेबसाइट या फिर यूट्यूब पर एक चैनल बनाकर सीधे संपादक भी बन सकते हैं.. भले ही एक छोटी सी खबर तक लिखनी न आती हो..

अगर गौर करेंगे तो पिछले कुछ सालों में पत्रकारिता का स्तर एकदम निचले स्तर की ओर जाता महसूस हुआ है.. ताज्जुब इस बात का नहीं है कि ऐसा क्यों होता जा रहा है..ताज्जुब ये होता है कि पत्रकारिता एक पढ़ा लिखा और बेहद सुलझा हुआ कार्यक्षेत्र है तो अब ऐसे में जब जिम्मेदार लोग, गैर जिम्मेदारी भरा कार्य करें तो दुख तो होगा ही..

अभी पिछले कुछ दिनों में कई पत्रकारों (अब पत्रकार कैसे कहें ये भी सोचने का विषय है) से

मुलाकात हुई, बातचीत हुई और बातचीत के दौरान पता चला कि प्रेस कार्ड धारी कइयों को ये नहीं पता कि किसी खबर में 5 का क्या रोल है तो किसी को हेडिंग लिखने तक कि जानकारी नहीं तो कोई ‘कालम’ पर सोचने लगा.. उनसे भी चार कदम वो आगे थे जिन्हें उनकी खुद की पत्रकारिता के पहले आयाम तक याद नहीं.. एक तो ऐसे भी मिले जिन्हें अपने उस संस्थान का भी सही नाम नहीं याद रहा, जिसके नाम पर वो प्रेस कार्ड पर्स में रखकर बातचीत के दौरान निष्पक्ष पत्रकारिता का दावा कर रहे थे.. कई ऐसे लोग भी मिलते रहते हैं जिन्हें पत्रकार और पत्रकारिता से कोई सरोकार

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नहीं, बस किसी बड़े भाई ने कार्ड बनवा दिया है और कोई भी मामला होगा तो भाई मैनेज कर लेंगे.. कुछ का काम सिर्फ इतना है कि कार्ड लेकर, गाड़ी में प्रेस लिखवाकर घूमो तो कुछ का कार्ड इसलिए बना है कि उनका अच्छा खासा व्यापार (उन्हीं बड़े भाई की ‘अपने काफी काम आएगा ये बन्दा’ की सोच के चलते) चल रहा है, यानी बन्दा मोटा आसामी है तो उसे भी अपने संस्थान में पत्रकार बना दिया..

लेकिन आप अगर सच में पत्रकारिता और अपने नाम ले आगे गर्व से पत्रकार लिखना पसंद करते हैं तो सिर्फ ये सोचिए कि अब ऐसे लोगों की वजह से पत्रकारिता का स्तर और इनकी वजह से समाज में एक पत्रकार के तौर पर आपके सम्मान का स्तर क्या बचा है ?

खैर, चंद गैरजिम्मेदार लोगों की वजह से कई बार कुछ मौकों पर आम जनता के बीच ‘चुप’ रहना पड़ता है क्यों कि वहां पत्रकार सिर्फ एक .” समझा जाता है और हमारे पास उन लोगों के सवालों का कोई जवाब नहीं होता.. खाली जगह छोड़ दी है, वर्तमान पत्रकारिता को देखते हुए जो समझ आये भर लीजिएगा..!