गणेश शंकर विद्यार्थी और ‘प्रताप’ की चर्चा के बिना हिंदी पत्रकारिता की बात करना शायद पत्रकारिता से बेमानी होगी। हिंदी पत्रकारिता का इतिहास गणेश शंकर विद्यार्थी (Ganesh Shankar Vidhyarthi) और उनके समाचार पत्र “प्रताप” (Pratap Press) के बिना अधूरा माना जाता है।
वर्तमान पत्रकारिता के दौर में भले ही उनकी यादें धुंधली होती जा रही हों, लेकिन सामाजिक पत्रकारिता से जुड़े गम्भीर लोग आज भी विद्यार्थी जी के त्याग, साहस और बलिदान को श्रद्धा से याद करते हैं।
अगर सही मायनों में देखा जाए तो समाज को समर्पित निष्पक्ष पत्रकारिता कभी भी आसान नहीं रही..न आज के दौर में और न ही उस दौर में जब देश अंग्रेजों की गुलामी की जंजीर में जकड़ा हुआ था।
अंग्रेजों की गुलामी के उसी दौर 1913 में विद्यार्थी जी ने कानपुर से “प्रताप” नामक एक साप्ताहिक समाचार पत्र (बाद में दैनिक हो गया) शुरू किया। गणेश शंकर विद्यार्थी का यह कदम अपने आप में अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देने जैसा था।
उनकी निर्भीक लेखनी ने अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी। ‘प्रताप’ क्रांतिकारियों, किसानों, श्रमिकों और शोषित लोगों की बुलन्द आवाज बन गया।
गणेश शंकर विद्यार्थी जी का जीवन और संघर्ष- pratap
हिंदी पत्रकारिता के भीष्म पितामह गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद के अतरसुइया मोहल्ले में हुआ था। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद कैरियर की शुरुआत क्लर्क और शिक्षक के रूप के की लेकिन स्वदेशी आंदोलन में सहभागिता के चलते उनकी रुचि पत्रकारिता की ओर मुड़ गयी।
विद्यार्थी जी साहित्यकार पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और “सरस्वती” नामक एक पत्रिका से उन्होंने पत्रकारिता का आरंभ करते हुए बारीकियाँ सीखीं।
1913 में उन्होंने अपना अखबार “प्रताप” निकाला। शुरुआत साप्ताहिक रूप में हुई, लेकिन 1920 से यह दैनिक समाचार पत्र बन गया। विद्यार्थी जी ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन को अपनी लेखनी से गति दी बल्कि खुद भी आंदोलनों में सक्रिय रहे।
चुभती हुई लेखनी और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका के चलते उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया और उन्हें कई मुकदमों का सामना भी करना पड़ा लेकिन विद्यार्थी के “प्रताप” का प्रकाशन कभी नहीं रुका। Pratap
क्रांतिकारी आंदोलन के साथ गाँधी जी से जुड़ाव:
गणेश शंकर विद्यार्थी की स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता और उनकी बेबाक और निष्पक्ष लेखनी से महात्मा गाँधी भी काफी प्रभावित हुए और यही वजह थी कि वो विद्यार्थी जी को बहुत सम्मान देते थे। 1916 में गांधी और लोकमान्य तिलक जब लखनऊ कांग्रेस में आए तो वे “प्रताप प्रेस” भी पहुँचे।
कानपुर का ‘प्रताप’ (Pratap Press)
कानपुर के फीलखाना क्षेत्र की एक गली में स्थित “प्रताप प्रेस” भवन से निकलने वाला अखबार न सिर्फ अंग्रेजों के गले की हड्डी बन गया था बल्कि प्रताप प्रेस की वो बिल्डिंग उस समय तमाम क्रांतिकारियों का सुरक्षित ठिकाना बन गया था।
चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह की ऐतिहासिक मुलाकात भी विद्यार्थी जी ने कानपुर में ही कराई थी और भगत सिंह ने ‘बलवन्त’ के नाम से प्रताप प्रेस की बिल्डिंग में काफी दिन गुजारे थे क्यों कि बिल्डिंग की बनावट ऐसी थी कि अंग्रेजों की नजरों से बचना आसान हो जाता था।
कानपुर में “प्रताप” प्रेस की जिस इमारत को धरोहर के रूप में सहेजना चाहिए था, वो वक्त के थपेड़ों और जिम्मदारों की अनदेखी के चलते मायूस सी जीर्ण शीर्ण अवस्था में खड़ी है।